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पिछले काफी दिनों से हमारे देश के अखबारों में एक खबर काफी सुर्खियों में है। .वह है सूखे की समस्या।सर्दियों में हालत कुछ सामान्य रहती है लेकिन जैसे जैसे गर्मियां आती हैं ,पारा चढ़ने के बाद यह समस्या बढ़ने लगती है। आज हमारे देश के एक दर्जन राज्य सूखे की चपेट में है। जहाँ पीने के लिए बाहर से पानी मंगवाया जा रहा है। आये दिन लोग सूखे से परेशान होकर आत्महत्या करते है। कल बैंगलोर के एक किसान ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली। क्योंकि सूखे की समस्या से कृषि नहीं हो पा रही है जिससे किसानों के पास खाने को अनाज नहीं है तथा साहूकारों का ऋण नहीं चुका पाते है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल में किसानों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्याएं अब अखबारों की सुर्खियां भी नहीं घेरतीं। लोग सूखे की समस्या से परेशान होकर शहर की ओर पलायन कर रहे है। देश का अन्नदाता आज गाँव को छोडने व दुनिया को छोड़ने के लिए मजबूर हो गया है। पिछले दिनों जब में गाँव गया तब मैंने वहां देखा कि एक नलकूप पर लाल रंग किया हुआ था।
और गाँव के तालाबों की जगह अब लोगों के घर बने हुए है। देश की सबसे पवित्र नदी को आप कभी बनारस में आकर देखिएगा। आपको उसी पवित्र गंगा नदी के पानी पर घिन आएगी। गंगा की सफाई के लिए दो हजार करोड़ का बजट घोषित किया गया लेकिन उसका दस प्रतिशत भी उपयोग नहीं हुआ है।
अगर प्रधानमंत्री जी बनारस के घाटों का दौरा करते है तो उसी पूर्व निर्धारित घाट के आस पास की सफाई करवा ली जाती है। आज देश की प्रत्येक नदी प्रदूषण की चपेट में है। लोग पानी का दुरूपयोग करते है जिसका नतीजा आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। आज महाराष्ट्र के लातूर जिले में लोग पानी का संकट झेल रहे है और पीने के पानी के लिए सात घंटे लाइन में खड़ा रहना पड़ रहा है। वहीं दूसरी जगह लोग पानी की कीमत को तवज्जो नहीं दे रहे है। दिल्ली में कभी मेट्रो से जाते वक्त यमुना को देखिएगा क्योंकि वहां अब यमुना नदी की जगह एक नाले ने ले ली है।
पानी की कीमत का अंदाजा नहीं लगा पा रहे भारत के लोगों ने अगर पानी का मोल जल्द ही नहीं समझा तो वर्ष 2020 तक देश में जल की समस्या विकराल रूप ले सकती है।
इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि कभी दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह चेरापूंजी में भी अब लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है।
तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़े जाने की आशंकाओं के बीच भारत में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है नतीजतन कई राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। पानी के इस्तेमाल के प्रति लोगों की लापरवाही अगर बरकरार रही तो भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।एक और तो गांवों में साफ पानी नहीं मिलता तो दूसरी ओर, महानगरों में वितरण की कामियों के चलते रोजाना लाखों गैलन साफ पानी बर्बाद हो जाता है। शहरों में पानी की किल्लत की एक और प्रमुख वजह है वाहनों की सफाई में पानी का बर्बादी। लोग हजारो लीटर पानी वाहनों की सफाई में बर्बाद कर देते है। जल संकट ने भारत के कई राज्यों को अपनी चपेट में ले रखा है। जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
खेती में आज भी पानी का पारंपरिक ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है और इसमें नई तकनीकी और तौरतरीकों को नहीं अपनाया गया है। नतीजतन बहुत बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद होता है। जोहड़, तालाब, कुएं, बावली आदि पाट दिये गए हैं और बहुत बड़े पैमाने पर भवन निर्माण होने के कारण जमीन के भीतर पानी की स्वतः होने वाली आपूर्ति बंद हो गई है जिसके कारण भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पानी को लेकर आये दिन लड़ाई झगड़े की खबरें भी आती रहती हैं. लेकिन महाराष्ट्र के लातूर में पानी का संकट इस बार इतना गहरा गया है कि प्रशासन को यहां जल स्रोतों के आसपास धारा 144 का प्रयोग करना पड़ा है।
महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में लोग पानी की कमी की वजह से एक से ज़्यादा शादियां कर रहे हैं. जब एक पत्नी, बच्चे और घर संभालती है तो दूसरी पत्नी सिर्फ पानी लाने का काम करती है, क्योंकि महिलाओं को अपने घरों से कई किलोमीटर तक पैदल जाकर पानी लाना पड़ता है।
राजधानी दिल्ली तक में सभी को नल से पानी नहीं मिल रहा है, जिसकी वजह से जल माफिया का उदय हो गया है. वे किल्लत का सामना कर रहे लोगों को महंगे में पानी बेचते हैं। इसका कारण हम सब जानते है क्योंकि इसका कारण या वजह हम ही है। इस पानी के संकट का निवारण भी हो सकता है अगर पानी का सही से उपयोग किया जाये। सरकार द्वारा सुख ग्रस्त इलाकों में नहरों से पानी पहुँचाया जाए। क्योंकि इसी तरह सूखे के हालात बने रहे तो देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाएगी। सरकार द्वारा जल के सरंक्षण से संबधित कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए जिसमे लोगों को जल संकट के प्रति जागरूक किया जाये। बारिश के पानी का एकत्रण किया जाना चाहिए।
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